Barsana

बरसाना श्री राधारानी की क्रीड़ास्थली है, यहाँ अनवरत रस की वर्षा होती रहती है, इसलिए इसे ‘बरसाना’ कहते हैं । बरसाना महाराज वृषभानु जी की राजधानी है, इसलिए इसे ‘वृषभानुपुर’ भी कहते हैं ।
यद्यपि वृन्दावन में ही बरसाना है किन्तु श्रीजी के स्थाई निवास के कारण यहीं से सम्पूर्ण वृन्दावन रसमय बनता है ।
जिस दिशा की वायु के स्पर्श से श्री कृष्ण आह्लादित होते हैं और उस दिशा की वायु को धन्य मानते हैं, महाप्रभु श्री हित हरिवंश बरसाना के उसी दिशा को नमस्कार कर रहे हैं –

“तस्या नमोऽस्तु वृषभानुभुवो दिशेऽपि “

  • श्रीराधासुधानिधि (1)

यद्यपि पञ्चयोजन अर्थात् 20 कोस (60 कि.मी) वृन्दावन सभी रसमय है किन्तु उस सम्पूर्ण वृन्दावन में व्यास जी को श्रीकृष्ण नहीं मिले किन्तु बरसाना रूपी वृन्दावन में मिल गये –

लागी रट राधा राधा नाम ।
ढूंढि फिरी वृन्दावन सबरो नन्द डिठोना श्याम ॥
के मोहन के खोर साँकरी के मोहन नंदगाँव ।
‘व्यास दास’ की जीवन राधे धनि बरसानो गांव ॥

  • श्री हरिराम व्यास जी

यहाँ के वास की आस शिव जी और शेष जी भी करते हैं-

बरसाने के वास को आस करें शिव शेष ।
ह्याँ की महिमा को कहे जहाँ कृष्ण धरे सखि वेष ॥

सम्पूर्ण ब्रज वृन्दावन का रत्न, वृषभानु भवन बरसाना में ही रहता है, जिसके प्रलोभन में ‘सच्चिदानन्द ब्रह्म’ चोर बनकर बरसाने आता है –

ब्रज में रतन राधिका गोरी ।
हर लीनी वृषभानु भवन ते नंदसुवन की चोरी ॥

  • श्री कृष्णदास जी

बरसाने में श्रीकृष्ण छद्म से सखी वेष धारण कर चोरी करने आते हैं । ‘बरसाने’ का यह गौरव क्यों है?

सुभग गोरी के गोरे पाय ।
धनि वृषभानु धन्य बरसानो धनि राधा की माय ।
जहाँ प्रगटी नटनागरि खेलत पति सों रति पछताय ॥
जाके परस सरस वृन्दावन बरसत रसनि अघाय ।
ताके शरण रहत काको डर कहत ‘व्यास’ समुझाय ॥

  • श्री हरिराम व्यास जी

महाप्रभु श्री हित हरिवंश जी ने बरसाने चलने की आज्ञा की है –

“चलो वृषभानु गोप के द्वार”

अथवा

देखि सखि राधा प्रिय केलि ॥
ये दोउ खोर खिरक गिरि गहवर ।
विहरत कुँवरि कंठ भुज मेलि ॥

खोर (साँकरी), गिरि (ब्रह्माचल), खिरक (वृषभानु खेरा), वन (गहवर वन) – ये चारों केवल बरसाने में ही हैं । गहवर वन और खोर साँकरी की लीला ‘स्वामी श्री हरिदास जी’ ने भी गायी है –

“हमारो दान मारयो इन”

अथवा

प्यारी जू आगे चलि आगे चलि आगे चलि
गहवर वन भीतर जहाँ बोले कोइल री
अति ही विचित्र फूल पत्रन की सेज्या
रुचिर सँवारी तहाँ तूब सोइल
छिन छिन पल-पल तेरीऐ कहानी तुव मग जोइल री ।
‘श्रीहरिदास’ के स्वामी स्याम कहत छबीलौ काम रस भोइल री ॥

मोर कुटी की मोर लीला भी ‘स्वामी श्री हरिदास जी’ ने गायी है । महावाणी जी में भी –

“गहवर निकुञ्ज कुञ्ज के आगे अद्भुत ठौर “

यही कारण है कि ब्रह्मा जी को रस प्राप्ति के लिए बरसाने में ही पर्वत बनने का आदेश प्रभु ने दिया था ।

अथ वृषभानुपुरोत्पत्ति माहात्म्य वर्णनं वाराहे पाद्मे च:-
पुराकृतयुगस्यान्ते ब्रह्मणा प्रार्थितो हरिः ।
ममोपरि सदा त्वंहि रासक्रीडां करिष्यसि ॥
सर्वाभिर्ब्रजगोपीभिः प्रावृट्काले कृतार्थकृत ।

सतयुग के अन्त में ही ब्रह्मा जी ने श्रीकृष्ण के निकट प्रार्थना किया कि आप गोपियों के साथ मेरे ऊपर विहार करें । प्रभु ने कहा – “आप बरसाना जाकर पर्वत बन जाओ, वहीं तुम्हें लीला दर्शन होगा । “
इसी से ब्रह्मा जी बरसाने में पर्वत बने ।

वाल्मीकि रामायण में एक प्रसंग आता है कि जब सीता जी वनवास के समय यमुना जी को पार कर रही थीं, यमुना जी को पार करते समय सीता जी ने यमुना जी की वन्दना की। उन्होंने देख लिया कि यह यमुना ब्रज से आ रही हैं । वहाँ श्लोक है –

कालिन्दीमध्यमायाता सीता त्वेनामवन्दत ।
स्वस्ति देवि तरामि त्वां पारयेन्मे पतिव्रतम् ॥
यक्ष्ये त्वां गोसहस्रेण सुराघटशतेन च
स्वस्ति प्रत्यागते रामे पुरीमिक्ष्वाकुपालिताम् ॥

  • वाल्मीकि रामायण, अयोध्या कांड (55.19,20)

सीता जी ने कहा – “हे माँ! मैं तेरी हजारों गायों से सेवा करुँगी।” सीता जी भी ब्रज भक्त थीं ।
जब अभय कर्ण जी यहाँ आये तो बड़े प्रसन्न हुए और गौ सेवा करने लग गए। इसीलिए रघुवंश का यह एक अलग वंश आता है, इन्हीं के वंश में रशंग जी हुए, जिन्होंने बरसाना बसाया है और इन्हीं के वंश में राधा रानी का प्राकट्य हुआ । यह बरसाने का इतिहास है । रशंग जी के वंश में ही राजा वृषभानु और राधा रानी हुई हैं । ये सूर्यवंशी थीं और श्रीकृष्ण चंद्रवंशी थे । यहाँ श्री नन्दनन्दन श्री राधिका से मोहित होकर नित्य रहते हैं-

परं नित्यं राधापदकमलमूले ब्रजपुरे ।
तदित्यं वीथीषु भ्रमति स महालम्पट मणिः ॥

  • श्रीराधासुधानिधि (232)

सोई तौ बचन मोसौं मानि तैं मेरौ लाल मोह्यौ री साँवरौ
नव निकुंज सुख पुंज महल में सुबस बसौ यह गाँवरौ ॥
नव-नव लाड़ लड़ाइ लाड़िली नहिं नहिं इह ब्रज जाँवरौ ।
‘श्रीहरिदास’ के स्वामी स्यामा कुञ्जबिहारी पै वारौंगी मालती भाँवरौ ॥

  • श्री केलिमाल (44)

बरसाना गाँव ब्रह्माचल पर्वत के नीचे है । ब्रह्माचल पर्वत जो ब्रह्माजी का अंग ही है । उनके मुख रुप चार शिखरों पर चार गढ़ हैं (1) मानगढ़ (2) दानगढ़ (3) विलासगढ़ (4) भानुगढ़ । जिन पर क्रमश: वृषभानु भवन (भानुगढ़), दानलीला (दानगढ़), झूलन लीला व विलास लीला (विलासगढ़) एवं मान लीला (मानगढ़) हुई है । सिंहपौर पर ब्रह्मा जी का विग्रह भी है जिसे भक्तगण प्रणाम कर पर्वत पर चारों गढ़ों के दर्शन करते हैं ।

ब्रह्मा जी, श्रीजी के चरणों की रज पाने के लिए यहाँ पर्वत बने । भागवत में आता है –

तद् भूरिभाग्यमिह जन्म किमप्यटव्यां
यद् गोकुलेऽपि कतमाङ्गिरजोऽभिषेकम् ।
यज्जीवितं तु निखिलं भगवान् मुकुन्द-
स्त्वद्यापि यत्पदरजः श्रुतिमृग्यमेव ॥

  • श्रीमद्भागवत (10.14.34)

ब्रह्मा जी चाहते थे कि ब्रज के किसी भी निवासी की चरण रज मिल जाए । उसकी रज, जिसका जीवन ही भगवान् हैं । श्रुतियाँ आज तक जिन चरणों की रज को ढूँढ़ रहीं हैं, वही रज ब्रह्मा जी को श्रीकृष्ण की कृपा से मिली ।

लीला स्थली :
बरसाना की परिक्रमा चार मील लंबी है । “पद्म पुराण के अनुसार यहां दो पर्वत आमने-सामने हैं – एक विष्णु-पर्वत है और दूसरा ब्रह्म-पर्वत है । बाईं ओर विष्णु-पर्वत है और दाईं ओर ब्रह्म-पर्वत है । ब्रह्म-पर्वत के ऊपर श्री राधा-कृष्ण का मंदिर है । उत्तर की ओर, इस पहाड़ी के निचले हिस्से में, राजा वृषभानु का महल है, जहाँ श्री वृषभानु महाराज, श्री कीर्तिदा महारानी, ​​​​श्रीदामा और श्रीमती राधिका के दर्शन हैं । पास ही में श्री ललिता का मंदिर है, जिसमें नौ सखियों के साथ राधिका के दर्शन हैं ।
“ब्रह्म-पर्वत के शीर्ष पर दान मंदिर, झूलन लीला (हिंडोला), मयूर-कुटी, एक रास-मंडल और श्रीमती राधा का मंदिर है । आगे दो पर्वतों के बीच सांकरी-खोर है । सांकरी-खोर के पास विलास मंदिर है, और विलास मंदिर के बगल में गहवरवन है । गहवरवन के भीतर राधा-सरोवर और एक रास-मंडल हैं, और पास में दोहनी-कुंड है । इस कुंड के बहुत निकट मयूर-सरोवर है, जिसका निर्माण चित्रलेखा जी ने किया था ।” भानु-सरोवर भी पास में है, और इसके किनारे पर महारुद्र व्रजेश्वर हैं । इसके बाईं ओर कीर्ति-सरोवर है । बरसाना के आसपास चार सरोवर या कुंड हैं:
(1) पूर्व में वृषभानु-कुंड,
(2) उत्तर-पूर्व में कीर्तिदा-कुंड,
(3) दक्षिण-पश्चिम में विहार-कुंड (जिसे बाद में तिलक-कुंड नाम दिया गया), और
(4) गांव चिकसौली के दक्षिण में दोहनी-कुंड ।

सांकरी-खोर चिक्सौली के उत्तर में स्थित है, और विष्णु-पर्वत पर, सांकरी-खोर के पूर्व में, विलास-गढ़ है । यह एक रास-मंडल का स्थान है । विलास मंदिर के पास वह स्थान है जहाँ राधिका बचपन में रेत से खेलती थी, महलों का निर्माण करती थी, इत्यादि । सांकरी-खोर के पश्चिम में, पहाड़ की चोटी पर, दान-गढ़ है; और सांकरी-खोर के दक्षिण-पश्चिम और चिक्सौली गांव के पश्चिम में गहवरवन और गहवर-कुंड हैं । गहवरवन में प्रवेश करते समय मयूर-कुटी दाहिनी ओर है । पहाड़ी की चोटी पर, गहवरवन के दक्षिण-पश्चिम में, मान-गढ़ और मान मंदिर हैं; और नीचे और पास में मानपुरा गांव है ।
मान-गढ़ के उत्तर में जयपुर के महाराजा का मंदिर है और उस मंदिर के उत्तर में श्रीजी मंदिर है । श्रीजी मंदिर के ठीक नीचे, ब्रह्माजी का मंदिर और श्रीमती राधिका के दादा महिभानु जी का महल है । उसके नीचे बरसाना गांव है । बरसाना के पश्चिम में मुक्ता-कुंड, अथवा रत्न-कुंड है ।

स्थान :
बरसाना गोवर्धन से 20 किमी पश्चिम में, काम्यवन से 9 किमी पूर्व में और मथुरा से 50 किमी उत्तर पश्चिम में स्थित है ।

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